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बारिश के मौसम मे अकसर

बारिश के मौसम मे अकसर
अदरक वाली चाय की खातिर….
हल्की सी एक “walk” लेकर…
“कॉलेज” की “कैंटीन” तक हो आते थे दोनो…
चाय क्या थी एक बहाना था
तुम्हे जी भर के देख लेने का….
और फिर अफसानों का दौर चल पड़ता
तुम बातो की ढील छोड़ती…..
और मैं किस्सों वाले “माँजे” का…
एक सिरा थाम लेता…
पतंग अच्छी ही उड़ी थी
हम दोनो के रिश्ते की….
फिर कुछ यूँ हुआ
तुम्हारी बातो का तागा कच्चा पड गया…
या मैंने ही छोड़ दिया “माँजा” शायद….
कैंटीन से दोनो एक दिन
खामोश लौट आये….
टेबल पर रखे दो गिलास…
बहुत देर तक ताकते रहे
खाली पड़ी कुर्सियो को….

लवराज टोलिया

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