बिसात शतरंज की आज भी लगा लेता हूँ,
चाल अपने हुनर की आज भी दिखा लेता हूँ,
हाथी और घोड़ों की आज भी पहचान नहीं है मुझे,
तो अपने पैदल भी मैं बड़े मोहरों से भिड़ा देता हूँ,
छोड़ नहीं पाया हूँ एक आदत आज भी पुरानी,
तो दो कश लगा कर तुझे आज भी भुला लेता हूँ।।
राही (अंजाना)