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बिस्तर

अँधेरे की वाट लगाने को जुगनुओं को आना पड़ा,
समन्दर में नहाने को खुद उतर चाँद को आना पड़ा,

आवाज़ लगाई दिल ओ ज़ान से मगर सुनी नहीं गई,
तो गमों के बिस्तरों को फिर आसुओं से भिगाना पड़ा।।
राही अंजाना

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