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बूढ़ी-सी झुर्रियों में…!!!

इन बूढ़ी-सी झुर्रियों में
जाने कितने राज़ हैं
नजरों को है इंतजार और
जाने कितने ख्वाब है
उम्र की दहलीज पर
बैठा तन का मेमना
बूंद आंखों में छुपी है
ह्रदय में जाने कितनी बरसात हैं
तन जला और मन जला है
जिंदगी के कोयले में
भाप बन कर उठ रहे हैं
यह दिलों के आगाज हैं।।

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