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बेटियाँ

फूल की महकी कली हैं बेटियाँ,
नूर सी सबको मिली हैं बेटियाँ।

रंजिशो औ’ नफ़रतों के दौर में,
आज भी कितनी भली हैं बेटियाँ।

मतलबी लोगों की फ़ैली भीड़ में,
हाथ थामे संग चली हैं बेटियाँ।

चंद सिक्कों के लिए ससुराल में,
रोज़ ही ज़िन्दा जली हैं बेटियाँ।

ज़ुल्म सह लेती हैं वो हँसते हुए,
घर में नाज़ों से पली हैं बेटियाँ।

अपने सपनों के नए आकाश में,
पंछी बन उड़ने चली हैं बेटियाँ।

~ अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

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