पापा के लिए तो
परी हैं बेटियां
हर दुख दर्द में
संघ खड़ी है बेटियां
फिर क्यों कहते हैं कि
तू धन है पराया
क्यों बेटी का कमरा भुला दिया
जब घर बनाया
बेटी नहीं तू बेटा है
कहते हैं सब अपने
फिर वक्त पर क्यों
भुला दिए जाते हैं सपने
बेटी कभी घर में
हिस्सा नहीं लेती
क्या इसीलिए वह घर का
हिस्सा नहीं होती
गूंजा था हर कोना
बेटी की किलकारी में
क्यों आज पराए हो गए
हम रिश्तो की बलिहारी में।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज