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बेज़ुबान

एक आवाज आई
हमें प्यार है तुम से
खिंचा चला गया मैं वहां
और होश मेरे थे गुम से.

कुछ भी पूछो तो
मुस्कान होठों पर वो रखती थी
बस देखती रहती मुझे
क्योंकि वो बोल नहीं सकती थी.

ना पन्नों में लिखी जाती
ना इश्क की कोई जुबां होती
होठों से कुछ ना कहती
आंखों से ही हाल-ए-दिल बयां कर देती.

पर सच्चा प्यार तो
मन की बात आंखों से ही पड़ता है
गिले शिकवे कितने भी हो
इशारों इशारों में ही झगड़ा है.

समझ गया मैं
तेरे दिल में जो मेरे लिए
मोहब्बत बेजुबां थी
अब मिली मुझे वो मोहब्बत
जो तेरी बाहों में बेपनाह थी.

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