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बोध

क्यूँ मनुज अबोध ,
बोध तुझमे ही सब
क्यों करता है खोज ,
शोध तुझमे ही सब
अविराम गति तू ,
विश्राम तुझमे ही सब

–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)–

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