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ब्रम्हास्त्र

एक मित्र ने यही मुझसे ब्रम्हास्त्र की फरमाइश की थी तो जी लीजिये जी पेश है

 

खुद से जो पूछा कि क्या चाहिए दिल बोला कि फिर वो समां चाहिए
वो बहती हवा वो गुज़रा ज़माना ये चाँद आज फिर से जवां चाहिए
तारे गिने अब ज़माना हुआ कोई छत को फिर से रोशन सा कर दे
वो किस्से वो गप्पें वो चाय के प्याले वो यारों की महफ़िल रवां चाहिए

खुद से जो पूछा कि क्या चाहिए

कि हो ऐसी बारिश कोई डर न हो जल्दी न हो और फिकर भी न हो
बरगद के आँचल में बैठे हों हम तुम बातों का कोई जिकर भी न हो
न शिकवा शिकन न कोई शिकायत बस आँखों से बातें बयां चाहिए
वो पगड़ी वो थैला वो रिक्शा वो तांगा घर में मुझे वो कुआं चाहिए

खुद से जो पूछा कि क्या चाहिए

मुझे चाहिए वो पायल की छम छम मुझे उसकी वो ही नज़र चाहिए
मुझे खिलखिलाहट वही चाहिए फिर से वो उसकी फिकर चाहिए
बहुत हो चुकीं ये बुतों की इबादत मुझे मेरा अपना खुदा चाहिए
बहुत मिल चुकीं ये झूठी तसल्ली सच्ची वो एक ही दुआ चाहिए

खुद से जो पूछा कि क्या चाहिए

‪#‎विकास_भान्ती‬

 

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