ब्रह्मचर्य है तो जिन्दगी है ।
अन्यथा जिन्दगी असफलता की सीढ़ी है ।
वीर्य पे टिका मानव का संसार है ।
अगर नर वीर्यहीन है, तो उसका जिन्दगी बेकार है ।।1।।
आज के दौर में भौतिक परिवेश में युवाओं का हो रहा सर्वनाश है ।
कौन इसका जिम्मेदार है, कौन इसका दोषी है ?
कोई क्यूँ नहीं कुछ बोलता है, सब मौन क्यूँ साधे है ?
सरकार इसका जिम्मेदार है, क्योंकि व्यवस्था आज हमारा भौतिकी है ? ।।2।।
पहले तो होते थे हमारे देश में दयानंद सरस्वती, विवेकानंद जैसे संत ।
भगतसिंह, चन्द्रशेखर, बिस्मिल, बोस जैसे महान क्रांतिकारी हमारा शान है ।
लेकिन अब युवा हमारे कहाँ है, इनकी रूख किस ओर है ?
ये आज क्या देते है देश को, ये क्या बनते है, ये हमारे प्रत्यक्ष है ? ।।3।।
हमारी कविता की एक पंक्ति है-
ब्रह्मचर्य के अभाव में हो रहा युवाओं का पतन है ।
अब कौन-सी शिक्षा देती व्यवस्था कि बलात्कार कर रहे है लोग ?
कौन बताये सरकार को आपकी नीति जनता के लिए घातक है ।
आपकी व्यवस्था युवाओं के लिए सर्वनाश का कारण है ।।4।।
कवि विकास कुमार