बज़्म Pragya 4 years ago जीने को यूँ जीती हूँ जैसे कोई गुनाह किये जा रही हूँ मैं। गीत भी गा रही हूँ, ईद भी मना रही हूँ। ज़िन्दगी की बज़्म फ़िर सजा रही हूँ मैं।