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भक्ति तुम बिन वैभव कहीं एक पल को रह न पाये

भक्ति तुम बिन वैभव कहीं एक पल को रह न पाये,

जबसे देखा तुमको मुझको कुछ और नज़र न आये,

कितने दिन से बैठा था मैं कितने राज़ छुपाये,

अब डरता हूँ कहीं आँखों से मेरी ये भेद न खुल जाए,

रोज नहीं मिल पाऊं तो तू ख़्वाबों में मिल जाए,

काश जनम जनम को तू बस मेरी ही बन जाए।।

– राही (अंजाना)

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