ईश्वर की भक्ति में छिपा है
जीवन का आनंद
शब्दों को ताकत देता है
जैसे अलंकार और छंद
उसके बिना इस जीवन में
कुछ भी नहीं अस्तित्व हमारा
मां बाप भी एक रूप है उनके
लाठी बन, बन जाओ सहारा
विपरीत हवा का रुख रहा
फिर भी बच्चों में ही मां का सुख रहा है
धैर्य धरा पर अगर कहीं है
वह ममता का आंचल है
दुख सुख आशा और निराशा
यह तो एक परीक्षा है
फिर भी मन के कोने कोने
मचा हुआ है द्वंद
शब्दों को ताकत देता है
जैसे अलंकार और छंद
जिसने सूरज चांद बनाया ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज