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भला मौन रहकर भी कैसे कोई गहरे तीर चला लेता है

भला मौन रहकर भी कैसे कोई गहरे तीर चला लेता है,

छोटी-छोटी बातों से ही मन की तस्वीर बना लेता है,

लगे चोट अपनों से तो खुद को ही समझा लेता है,

चेहरे पर झूठा चेहरा रख क्यों अपना दर्द छुपा लेता है,

जीवन की इस बगिया में मानों फूल खिला लेता है,

काँटो भरी इस दुनियॉ में वो कैसे कदम बढ़ा लेता है।।

– राही (अंजाना)

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