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भीमसेनी एकादशी

की विनती थी भीमसेन ने
प्रभु वेद व्यास के चरणों में।
उपवास एकादशी करते हैं
रख प्रीत सभी हरि चरणों में।।
वृक अग्नि नित जलती है
पितामह मेरे पेट के भीतर।
शांत न होती तबतक जबतक
अन्न अकूत न डालूँ भीतर।।
मैं भी करूँ उपवास सदा
ये कहते मुझ से सब भ्राता।
मात्र एक व्रत बतलाओ प्रभु
हो पापहारिणी बहुसुखदाता।।
जेठ शुक्ल की एक एकादशी
निर्जल होकर रख लो भीम।
जन्म जन्म के पाप कटेंगे
सुख पाओगे वत्स असीम।।
प्रकाश में लाया भीमसेन ने
एतदर्थ भीमसेनी कहलाती है।
अश्वमेध सहस व वाजपेय सौ
यज्ञ फल की ये महती दाती है।।
पठन श्रवण जो करे हमेशा
‘विनयचंद ‘महात्म एकादशी।
सुख शांति से जीवन कट जाए
कभी न आए बीच उदासी।।

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