जैसे जैसे मकर संक्रान्ति के दिन करीब आते हैं
हर जगह पतंग! हर जगह पतंग!
ये कागज की पतंगें बहुत आनंद देती हैं
नीले आसमान पर, एकमात्र खिलौना
सबको मंत्रमुग्ध कर देते हैं
हम सभी आनंद लेते हैं
जैसे जैसे मकर संक्रान्ति के दिन करीब आते हैं
“ढेल दियो मियाँ!
लच्छी मारो जी !!!
लपटो !! लपटो !!
“अफआआआआआआआआ !! अफआआआआआआआआ !!”
छतों पर उत्सव का माहोल होता है
बस सूरज और आकाश, और उत्साह भरे स्वर
और पतंग! और पतंग!
पतंग से टकराते ही युद्ध शुरू हो जाता है
पतंग काटने के लिए होड़ लग जाती है
सब बट जाते है गुटों में
आसमान नहीं बँटता! आसमान नहीं बँटता!
जैसे जैसे मकर संक्रान्ति के दिन करीब आते हैं
हर जगह पतंग! हर जगह पतंग!
