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मज़बूरी

रूह काँप जाती थी सोचकर, बगैर तेरे रहना ।
आज ये आलम है, पड़ रहा गमे-जुदाई सहना ।

इसे वक्त की मार कहूँ, या मज़बूरी का नाम दूँ,
गलत ना होगा, इसे जिंदगी की जरूरत कहना ।

किस दोराहे पर वक्त ने ला खड़ा कर दिया ‘देव’,
कुछ वक्त ने, कुछ तुमने, सीखा दिया तन्हां जीना ।

देवेश साखरे ‘देव’

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