मन कि बात
जब मन कभी द्रवित होता
ऑसू पलको पर होता
रंग उडा उडा सा रहता
मन मेरा खोया रहता
अधरो कि मुस्कान
ना जाने कहा खो जाती
बातो कि घुटन में
मन मेरा रोता रहता
ना रंग समझ में आता
ना राग समझ में आता
बस मन मेरा ये
करूणा में डुबा रहता
ना दिल की कोई बात समझे
ना मेरा कोई जज्बात समझे
ना जाने किस मिट्टी का बना
बस लोग खेलने आते मुझसे
महेश गुप्ता जौनपुरी
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