यह मन बड़ा चंचल
कभी डोलता इधर
कभी डोलता उधर
ना जाने कब हो जाए किधर
कभी दूजे की
कभी अपनी फिकर
मन में चलता रहता उछल-पुथल
कभी रहती सद्भावना
कभी रहता स्वार्थ
कभी सोचे मुनाफा
कभी काज करे परमार्थ
कभी होता अधीर
कभी हो जाता विह्वल
यह मन बड़ा चंचल
–✍️ –एकता