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मन

मन
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मन की बंजर धरती पर फूल उगाए कौन

मेरी सोई हिम्मत को,फिर से जगाए कौन

बिखरा-बिखरा हैं मन मेरा
टूटा टूटा जाए
कल्पनाओ में मेरे फिर आये कौन

जहाँ खो गई सुंगध सुमनों की,
वहाँ बगिया बनाए कौन,

जो खुद से हो अनजान बेख़बर
उसे अपनाये कौन

अहमियत नहीं जिस चीज़ की
उसे अपने घर सजाए कौन

अकेला खड़ा है जो सदियों से ,
किसी के इंतज़ार में,
उस खण्डहर में आए-जाए कौन ।

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