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मय-कदा

चलो उसी कू-ए-यार में चलतें हैं साकी मय-कदा तो खाली हो गया लगता,
जहाँ शब-ए-सियह में भी उनके हुश्न-ए-जाम के प्याले मिला करते थे ,

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