जब झेल रहे थे वीर, सरहद पे दुश्मनों के गोली।
तब चारो दिशाओं में, गूंजा था इंक़लाब की बोली।।
अश्क भर आयी आसमां को, लहू के दरिया देख कर।
न जाने कितने सुहागन, गर्व से अपनी मांग पोंछ ली।।
सभी धर्म कसमे खायी, आज़ादी ही हमारा लक्ष्य है।
खेलेंगे होली जरूर मगर, वह होगी लहू की होली।।
कहीं नरम दल के विचार, कहीं गरम दल के विचार।
यही विचार धारे पे, चल पड़ी थी मस्तानो के टोली।।