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महामारी के साथ जिंदगी

अभी तो शुरू ही हुई थी मेरी उड़ान
पंख थे नए
बस चाहत थी ऊपर उड़ने की
कुछ करने की
मेहनत बना था जुनून
सफलता पाने की
तीर निकलने ही वाला था धनुष से यह कहानी है ताने के टूट जाने की।

अरमान थे बहुत
सपने थे पूरे करने
ये अनिश्चितता थी जिंदगी की
आने वाले दिन थे बुरे
वो दिन तो चले गए थे लेकिन
फिर अच्छे दिन में आ कर दी थी बुरी दस्तक
यह कहानी नहीं है सिर्फ मेरी
है हजारों लाखों की।

समय तो चल रहा था लेकिन किसी के साथ नहीं था
महामारी थी आन पड़ी
लोगों की जिंदगी दुख भरी
बीमारी से लड़ने का उपाय था ऐसा किसी के साथ नहीं हो सकता था उठना बैठना
अब तक नहीं लगी थी धनुष की रस्सी
जिंदगी बन गई थी घर के गुलामों सी।

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