महारानी
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समस्त आकांक्षाओं का वृहद आकाश.. और पतंग सी वह।
उड़ती ..खिचती..
डोर से बँधी
ऊँचा उड़ने का माद्दा रखती..वह।
इंद्रधनुषी रंगो से सजे..
ख्वाब..
हृदय में सजाएँ,
पेंडुलम सी झूलती वह।
भीगे आँचल.. खाली मन को छुपाती,
चेहरे को सुंदर कचनार सी सजाती वह।
पहाड़ी पर खिले बुरुस के फूल सी..
तेज आँधी में डटे हुए पेड़ सी वह।
बंजर मन में केसर की खेती बसाए..
प्रेम श्रृंगार कर
उदास चेहरे पर हँसी चिपकाए वह।
ओस व सूर्य के उजास से आँखे धोती,
चमकती निखरती वह।
चाहती है थोड़ा सा प्रेम, सम्मान,
कोमल एहसास वह।
जब पुरुष समझ जाता है उसका मन
तो बना लेती है उसे प्राणों का आधार वह।
चरण रज भाल पर सजा खिल उठती है ग़ुलाब सी वह।
नाचती है सूर्य रश्मियों सी
महसूस करती है ह्रदय में खुद को कुछ खास…
जैसे बन गई हो
“महारानी” वह।
निमिषा सिंघल