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महफ़िल-ए-चाय

मैं मान लेती हूँ, की तुम्हे
मेरी याद नहीं आती , पर
वो महफ़िल-ए-चाय तो याद आती होगी !
वो शाम की रवानगी ,
वो हवा की दिवानगी,
वो फूलो की मस्तांगी ,
याद न आती हो , पर
वो चाय की चुस्की की
आवाज तो याद आती होगी !
याद ना आती हो तुमको
गूफ्तगू-ए-महफिल , पर
निगाहों की शरारते तो
याद आती होगी !
मैं मान लेती हूँ , की तुम्हे
मेरी याद नहीं आती , पर
वो महफिल-ए-चाय तो याद आती होगी !
हर शाम चाय के साथ
अखबार पढ़ना , आदत है तुम्हारी
चाय का प्याला गर्म है ,
ये देखना याद नहीं रहता तुम्हे, पर
चाय से आज भी जब
तुम्हारे होंठ जलते होंगे , तो
मेरी फ़िक्र तो याद आती होगी !
मैं मान लेती हूँ, की तुम्हे
मेरी याद नहीं आती , पर
वो महफिल-ए-चाय तो याद आती होगी !
(निसार )

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