Site icon Saavan

माँझी के नाव चलता बीच मँझधार में ।

माँझी के नाव चलता बीच मँझधार में ।
उसे कोई विपरित धारा का प्रवाह रोकता नहीं ।
क्योंकि वह हर परिस्थिति में नाव को खेवा है ।
उसे सिर्फ मंजिल दिखता है, राह उसे बुलाता है ।।1।।

राह-राह के हर कठिन परिस्थिति में उसने खूद को संभाला है ।
उसे विषम लहरे-तरंगे, ज्वाला क्या बुझाये, जो अपनी होश से चलता है ।
वह अपनी एक नई राह बनाता है, जिसे पाकर वह अपनी मंजिल तक पहुँचाता है ।
माँझी को लहरों से क्या लेना, उसे तो सिर्फ अपनी मंजिल सुझता है ।।2।।

ऐसे ही नहीं मिलते किसी को सफलता का वह महान श्रेय है ।
किसी ने रात जाग के सोया है, तो किसी ने दिन गँवाकर रात बिताया है ।
वह नर जो तन को मौषम के ढ़ाँचा में ढ़ाला है ।
वही नर सच में सफलता को कदम में झुकाया है ।।3।।

हार जीत की तो बात अलग है ।
सारी दुनिया पहले हार के ही जीते है ।
वीर नहीं पर पुरूषों के कंधों पे जीते है ।
वह अपनी दिशा को एक राह देता है ।।4।।
कवि विकास कुमार

Exit mobile version