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माँ महंगे होटलों में भी “रहस्य “देवरिया

माँ महेंगे होटलो मे भी (“रहस्य”)

तेरी हाथों कि वो दो रोटियाॅ कहीं और बिकती नहीं
माँ महँगे होटलों में भी खाने से भूख मिटती नही
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गरमाहट बहुत मिलती थी तेरी ऑचल कि ऑड मे मुझे
अब तो ये ठिठूरन किसी कम्बल रजाई से जाती नही
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निंद आ जाती थी तेरी लोरियाॅ कहाँनिया सूनकर
अब तो कोई भी गाने सुनू पर ऑखो को निंद आती नही
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मै चाहे लाख तलाश लू सुकून मंदिर मस्जिद मे भी
पर जो सूख तेरी कदमो मे थी वो कही मिलती नही
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तेरी हाॅथो कि वो दो रोटियाॅ कही और बिकती नही
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“”””(“रहस्य”)”””देवरिया

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