जब तक वो जिदा थी खाने की लाचारी थी।
मरते ही श्राद्ध की भोज बहुत भाड़ी थी।
जीवन में रूखी-सुखी भी नसीब न थी
श्राद्ध में लाव-लस्कर की तकलीफ न थी।
उसे जो एक ग्लास पानी भी दे नही पाते थे,
वो रोक कर ब्राह्मणों को दान दिये जा रहे थे।
बड़ी बदनसीब थी वो माँ जो ठंड से मरी थी,
उसके श्राद्ध में कंबलों का दान दिये जा रहे थें।