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माखन चोरी करते गिरधर,

ब्रज की एक सखी के घर
माखन चोरी करते गिरधर,
पकड़ लिए हैं रंगे हाथ
फिर भी करते हैं मधुर बात।
बोली ग्वालिन यूँ कान खींच
मन ही मन में रस प्रेम सींच,
बोलो क्यों करते हो चोरी,
किस कारण से मटकी फोरी।
सारा माखन गिरा दिया
मन-माखन मेरा चुरा लिया,
मात यशोदा है भोरी,
फिर तुझे सिखाई क्यों चोरी।
जाकर कहती हूँ अभी उन्हें
यह लल्ला करता है चोरी,
होगी खूब पिटाई तब
जायेगी दूर ढिठाई तब।
ना ना ऐसा मत कर गोरी
जो कहे करूँगा मैं गोरी
वैसे भी मैंने नहीं करी,
तेरे घर में माखन चोरी।
वो भाग रहे हैं ग्वाल-बाल
उन्होंने की माखन चोरी,
मैंने तो केवल स्वाद चखा
मीठा माखन तेरा गोरी।
तू मीठी, माखन मीठा है,
अब भी तेरा दिल रूठा है,
मैं तो बस चखने आया था,
यह माखन तेरा मीठा है।
जितना चाहे गाल खींच ले
कान खींच ले, नाच नचाले,
पर मैया से मत कहना
माखन चोरी की नन्दलाल ने ।
मन ही मन में हँसी खूब वह
मतवाली ग्वालिन गोरी ,
सुना रहे थे कृष्ण कन्हैया
मीठी सी बातें भोरी।
चोरी करते मिले कन्हैया
भीतर-भीतर हंसते हैं,
सबका मैं हूँ सब मेरे हैं
फिर चोरी क्यों कहते हैं।
—— डॉ0 सतीश पाण्डेय

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