लेख:- ‘मातृभाषा एकमात्र विकल्प’
मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिये भाषा का प्रयोग करता है। वह अपनी बात लिखित,मौखिक व सांकेतिक रूप मे दूसरे तक प्रेषित करता है। भाषा संप्रेषण का कार्य करती है। यह आवश्यक वार्तालाप,भावनाओं,सुख- दुख और विषाद को प्रकट करने मे सहयोग देती है। भारत देश मे लगभग तीन हजार से ज्यादा क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं का प्रयोग लोगो द्वारा किया जाता है। भारतीय सविंधान मे इक्कीस भाषाओ को मानक स्थान प्रदान किया गया है।
शिक्षा के क्षेत्र मे भाषा का अतिमहत्वपूर्ण योगदान है। भाषा के बिना किसी पाठ्यक्रम व विषय ज्ञान की कल्पना भी नही की जा सकती है। भारत के इतिहास का अध्ययन करने पर हम संस्कृत,पालि,अरबी,फ़ारसी आदि अनेकानेक भाषाओं के बारे मे पढ़ते है। संस्कृत भाषा की महत्ता हमे उसके उन्नत,समृद्ध साहित्य और व्याकरण से ज्ञात होता है।
भारत विविधताओ का देश है। ऐसे मे बहुभाषिता का होना कोई बड़ी बात नही है। बच्चे अपने आस-पास के परिवेश मे प्रचलित भाषा को आसानी से सीख लेते है। जिस भाषा को उनकी मातृभाषा कहा जाता है। इस भाषा को सीखने के लिये बच्चों को कोई विशेष प्रयास नही करने पड़ते। यह उनके द्वारा सीखी गयी पहली भाषा होती है। अपनी मात्रभाषा का प्रयोग अपने दैनिक जीवन मे आसानी से करते है। बच्चे अपनी पहली भाषा यानी मातृभाषा के साथ विद्यालय मे प्रवेश करते है और वहाँ पर दूसरी और तीसरी भाषा को सीखते है।
बच्चों को विद्यालय मे पाठ्यक्रम सीखने मे कठिनाई होती है। विद्यालय मे प्रयोग होने वाली भाषा उनके परिवेश की भाषा से भिन्न होती है। पाठ्यक्रम की भाषा उच्चस्तरीय व क्लिष्टता से परिपूर्ण होती है। उसमे मानक शब्दों का प्रयोग होता है। कभी- कभी तो भाषा ही पूरी तरह बदली हुयी होती है। ऐसे मे ज्वलंत प्रश्न यह उठता है कि बच्चों को अन्य भाषाओं और विषयों का ज्ञान कैसे कराया जाये?
किसी भी भाषा का विकास सुबोपलि यानी सुनना,बोलना,पढ़ना और लिखना पर निर्भर करता है। इसलिये प्राथमिक कक्षाओं मे सुबोपलि का प्रयोग करते हुये बच्चों मे भाषा का विकास करना चाहिये।
कविता पाठ और सस्वर वाचन सुनने की क्षमता का विकास का एक सशक्त माध्यम है। कक्षा मे अध्यापक द्वारा किसी कविता का पाठ करना चाहिये और उसमे प्रयुक्त शब्दों को स्थानीय शब्दो मे वर्णित करना चाहिये। प्रारंभ मे विद्यालय मे बच्चों की स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हुये उन्हे अन्य विषयो से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। उसके उपरांत ही बच्चों मे अन्य विषयों की समझ विकसित की जा सकती है।
शिक्षक के सामने तब गम्भीर समस्या आती है जब बच्चे की मातृभाषा, शिक्षक की स्वयं की मातृभाषा और पाठ्यक्रम की भाषा अलग- अलग हो। ऐसी परिस्थिति मे शिक्षक को स्वयं मे सर्वप्रथम बच्चों की मातृभाषा की समझ विकसित करनी चाहिये।
बहुभाषी कक्षाओं का संचालन करके बच्चों मे उनकी मातृभाषा के सहयोग से दूसरी और तीसरी भाषा को विकसित करना चाहिये।
शिक्षकों को भाषा शिक्षण करते समय उच्चारण शुद्ध रखना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं मे बच्चों को सुलेख लिखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि उनका लेखन सुन्दर और त्रुटिरहित हो सके। श्रुतलेख भी बच्चों के लिये अनिवार्य होना चाहिये।
भाषा से ही अन्य विषयों की समझ बच्चों मे विकसित होती है तथा अन्य विषयों के सहयोग से भाषा का भी विकास होता है।
शिक्षक को यह जान लेना नितान्त आवश्यक है कि बच्चों की मातृभाषा के सहयोग से ही उन्हे विद्यालय से जोड़ा जा सकता है। मातृभाषा की बच्चों के ज्ञान के विकास का एकमात्र विकल्प है। मातृभाषा के प्रयोग को कक्षा मे प्रयोग करके बच्चों को भयमुक्त वातावरण प्रदान किया जा सकता है। शिक्षा ही जीवन का आधार है। इसलिये बच्चों को बहुभाषी कक्षाओं के माध्यम से ज्ञान प्रदान करते हुये उन्हे सुनहरा भविष्य प्रदान करना ही शिक्षक का पावन कर्त्तव्य है।