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मानवता की पहचान

कहाँ खो गई तेरी इन्सानियत
ओ इन्सान कहलाने वाले।
गन्दी हो गई क्योंकर नीयत
ओ इन्सान कहलाने वाले।।
हर सुख सुविधा भोजन पानी
सुलभ तुम्हारे घर में है।
फिर काहे का झगड़ा भैया
बोले आज डगर में है।
जानवरों की भी एक मर्यादा होती
तुम तो आखिर इन्सान हो।
“ध्रुवकुमार’ कुछ ऐसा करो
जो मानवता की पहचान हो।

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