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‘माहताब मेरा’

आ चलें फ़लक तले आसमाँ पुकार रहा होगा,
नूरीं की खिदमत में आफ्ता़ब भी तो आ रहा होगा,

क्या पता हो जायें तुझे दीदार तिरी माहता़ब का,
देखा था मैंने भी डोली में कोई चला आ रहा था,

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