मित्रता – तीर्थ ना जो जा पाया
व्यर्थ मानव का जन्म है पाया।
मित्र बिन जिंदगी मरुस्थल सी ,
मित्रता जल ने उसे हरियाया ।
मेरे प्यारे मित्रो ,
प्रातःकाल की
मधुर अनुभूति की सुहानी बेला में
सपरिवारसहर्ष मेरी ओर से प्रेषित
हर पल मंगलमय होने की
शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश