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मुक्तक-घनाक्षरी

कुछ अंध बधिर उन्मूलन किया करते है
अथवा पंगु गिरि शिखर चढा करते है |
कुछ सीमित आय बंधन में बांध हवा को
क्षैतिज उदीप्त किरिचों पर चाम मढते हैं ||
लेकिन कौन जो रोक सका शशि रवि को
लेखक विचारक और भला किस कवि को !
यह अनमोल धरोहर है स्वच्छंद धरा की
मति मूढ सहज सीमा इनकी तय करते है ||
ललचाते नयन लिये पैसों पर बिक जाते है
जो शिक्षा बेच मदिरालय में मदिरा पी जाते है |
जिनकी बुद्धि छोटी जीवन का मूल न जाने
चाटुकार को महामहिम का आसन दे जाते है ||
उपाध्याय…

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