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मुक्तक

मैं भूला था कभी तेरे लिए जमाने को!
मैं भूला था कभी अपने आशियाने को!
भटक रहा हूँ जबसे गम के सन्नाटों में,
हर शाम ढूँढता हूँ जामे-पैमाने को!

मुक्तककार-#महादेव'(24)

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