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मुक्तक 32

हवाओं  की नज़र से देखता हूँ मीर मैं तुझको ,

कि छूकर पास से निकलूं और तुझको खबर न हो .

ये दिल पत्तों सा हिलता है तेरी यादों के आने से,,

कभी तो झूम के बरसेगा सावन उम्मीद बाक़ी है .

…atr

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