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मुक्तक

कोई नहीं है मंजिल न कोई ठिकाना है!
हरपल तेरी याद में खुद को तड़पाना है!
मैं कैसे रोक सकूँगा नुमाइश जख्मों की?
जब शामे-तन्हाई में खुद को जलाना है!

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

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