Site icon Saavan

मुक्तक

तू जबसे गैर की बाँहों में चली गयी है!
जिन्दगी जख्मों की आहों में चली गयी है!
यादें चुभती हैं जिग़र में शीशे की तरह,
शाम मयखानों की राहों में चली गयी है!

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

Exit mobile version