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मुक्तक

तेरी गली से आज फ़िर होकर गुज़रा हूँ।
तेरी गली से आज फ़िर रोकर गुज़रा हूँ।
आवाज़ दे रही थी मुझे तेरी तिश्नगी-
तेरी गली से दर्द को छूकर गुज़रा हूँ।

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

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