हाथ बढ़े है देखो सकड़ौ,
धन के पोटली के चाह में।
एक दुसरे को धकेल कर,
भटक रहें है देखो कितने राह में।।
✍महेश गुप्ता जौनपुरी
हाथ बढ़े है देखो सकड़ौ,
धन के पोटली के चाह में।
एक दुसरे को धकेल कर,
भटक रहें है देखो कितने राह में।।
✍महेश गुप्ता जौनपुरी