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मुक्तक

बिस्तर से उठ चुके हैं मगर अब भी सोये है
न जाने कैसे ख़्वाब में मतिहीन खोये है |
गैरत ईमान का खतना बदस्तूर है जारी
आँखों ने कर दिया बयां छुप छुप के रोये है ||
फिर भी लगे है दाग के दामन से धोये है
सब कुछ लगा है दाव पर सपने संजोये है |
उम्मीद फिर लगी उसी साहिल से आज भी
जिसने कि बार हां मेरी कश्ती डूबोये है ||
उपाध्याय…

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