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मुक्तक

रूह उठती है काँप जमाने की तस्वीर देख कर
खुशनसीब और बदनसीब की तकदीर देख कर |
कोई हाजमे को परेशां है कोई रोटी की खातिर
बहुत हैरत में हूँ हथेलियों की लकीर देख कर ||
उपाध्याय…

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