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मुक्तक 9

लहरा रहा है सामने यादों का समंदर ,
जो डूबना भी चाहूँ तो किस किनारे से..
मेरे इश्क़ की दास्ताँ बस इतनी है,
तलाश हमसफ़र की थी मुकाम तन्हाई का मिला.
…atr

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