मुक्तक Lokesh Nashine 8 years ago ख़्वाबे-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल राहें भी रो पड़ीं मेरी तलाश देखकर ©® लोकेश नदीश