बड़े सलीके से मुखौटे के पीछे वो अपना चेहरा छुपा लेता है,
अपनों की हंसी की खातिर वो अपना दर्द भुला लेता है,
कितना मुश्किल है किरदार उस गरीब का यारों,
जो गरीबी की एक चादर में अपना जीवन गुजार लेता है,
यूँही होती नहीं पहचान उस जिस्म के अक्स की हमसे,
जिस चेहरे से मुखौटे वो अपना आईना उतार लेता है।।
राही (अंजाना)