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मुम्बई विजय सिंह केश पर मेरा कविता

सिधे साधे पर रोब दिखाकर
साबित तुमने कर ही दिया
बेगुनाह को पीट पीट कर
सुपुर्द खाक कर ही दिया
क्या न्याय की उम्मीद करें अब
भ्रष्ट कानून के वर्दीधारी से
गुंडागर्दी फैल चुका है
अब न्याय के अधिकारी में
अंधा कानून का पाठ पढ़ाकर
दांत चियार कर हंस ही दिया
विजय को कस्टडी में लेकर
भड़ास अपना निकाल ही लिया
नहीं किया था कत्ल किसी का
ना चोरी ना छिनारा
बेबुनियादी इल्जाम लगाया
मनबढ़ बिगड़ी औलादों ने
सत्य पर रहकर अडिग रहा
किया गुनाह भयंकर
होता अगर छिछोरा विजय
हाथ‌ कभी ना आता
कानून को गुमराह करके
भाग कहीं विजय जाता
नाम में अपने अभिमान था विजय को
सत्य बोला सच के राह चला
देख कर अंधी कानून व्यवस्था
विजय अपने प्राण को त्याग चला
ना जाने कितने विजय बिछड़ गये
कानून के ऊपर विश्वास करके
यह कोई अनजान गलती नहीं
यह सत्य का एक परिभाषा है
जंगल राज बनाकर बैठे हैं
न्याय के कानून धारी ही
रौब में अकड़ कर चलते हैं
खुद को समझते है कानूनधारी

महेश गुप्ता जौनपुरी

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