भीग गई पूरी शैय्या
मेघा बरसे खूब,
अब मैं सोऊँ कहाँ, रहूँ कैसे।
यह पगडंडी, घर है मेरा,
नभ नीला ही, छत है मेरा।
आज जिसे है मेघ ने घेरा।
तड़-तड़ बरखा, तन में- मन में
अब मैं रहूँ कहाँ कैसे।
जो कुछ था सब
भीग गया है,
सिर पर डाले चदरिया
तन धरती पर बैठ गया है।
उठ कर जाऊँ कहाँ,
नहीं है कोई ठिकाना यहां,
अब मैं रहूँ तो कहाँ अब कैसे,
खाऊँ कैसे बिना पैसे।