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मेरी कुट्टी तुमसे कान्हा

मैने माना, ओ रे कान्हा, दुनिया पल का आना- जाना,
पर है ठाना, दूँगी ताना, अब फिर जो तूने न माना,

तूने राधा के संग बाँधा, हो आधा पर प्रेम को साधा,
बोल, ये जो प्यार है… केवल देवों का अधिकार है ?

जिसका न रूप, ना आकार है …
निर्विघ्न चीत्कार है …
बिन अस्त्र का प्रहार है..
समय की मार .. हर बार की हार … मात्र हाहाकार…..

क्या केवल देवों का अधिकार है?
किन्तु अब मेरी बारी है, अब पूरी ही तैयारी है …
टूट गयी है शक्ति, मेरी अर्चना नहीं हारी है…

सुन ले…..जब तक प्राप्त नहीं अब प्यार है,
जिस पर मेरा अधिकार है !
तेरी पूजा नहीं स्वीकार है …

दूँगी ताना, अब है ठाना, जो तू मेरी बात न माना,
मेरी कुट्टी तुमसे कान्हा ….

– Ishwar

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