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मेरी मां

निस्वार्थ प्रेम की सूरत हो ,
भगवान की कोई मूरत हो ,
बरसे आंखों में जिसके दुआ ,आशीर्वादो से भरा कुंआ। सूखी धरती में वर्षा हो ,
तुम तेज धूप में छाया हो ।
तूफानों में डूबती नैया की माता तुम ही पतवार भी हो।
मां की गोदी में सिर रखकर चिंता छूमंतर हो जाती ,
बच्चों पर मुसीबत आने पर भगवान से भी मां टकराती।

बच्चों की भोली बातों पर जाती बलिहारी प्यारी मां ,
रास्ते में पड़े हुए कांटों को आंचल से झढ़ाती प्यारी मां ।जब भी परेशान हो घबराते ,
सपने में दिलासा देती मां।
हर दे जाती हर आफत का बाहों में हमें झूला ती मां।
जब चोट लगे मन घबराए और नींद हमारी उड़ जाए,
थपकी दे हमें सुलाती मां ,
खुद पूरी रात ना सोती मां ।
बच्चों को नजर ना लग जाए काला टीका लगा देती मां
बच्चे यदि गुस्सा हो जाए गुदगुदी से उन्हें हंसाती मां ।
क्या है जीवन? क्या है दर्शन? क्या अच्छा क्या बुरा यहां !सब ज्ञान हमें दे देती मां प्यारी सीखें दे देती मां ।
मां के इस अनमोल प्रेम का मोल नहीं दे पाऊंगी चाहे जितने भी जीवन पालू यह ऋण चुका ना पाऊंगी,। यह ऋण चुका ना पाऊंगी
निमिषा सिंघल

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