Site icon Saavan

मेरी हार …

मोहब्बत में हारे, क़यामत  में हारे
की ये ज़िंदगी हम शराफत में हारे..

न कोई है अपना ,न कोई पराया,
अब जियें किसलिए  और किसके सहारे..

न है यामिनी आज जीवन में मेरे ,
मिटे, मिट गए आज हम फिर किनारे..

कभी  लए  से सांसे जो चलती  थी  मेरी ,
मगर अब खड़े आज बेबस बेचारे..

मिला भी नहीं कुछ ,बचा  भी नहीं कुछ,
जो था पास में सब तुम्हारे  पे हारे…

मोहब्बत में हारे ,क़यामत  में हारे,
की ये जिंदगी  हम शराफत में हारे…

…atr

Exit mobile version